Monday 9 April 2012

सुरमई शाम

तपती सिसकती धूप में शीतल छांव तुम हो

तृषित थकन का अभिराम तुम हो

जो ढलकती जाए वो सुरमई शाम तुम हो

सांसो की रवानी और मेरा अरमान तुम हो


 
 

बेकरारी

छू ले जो दिल को मेरे ऐसी नजरे दीदार ना कर

खुद को भी खुदा समझ लूँ ऐसे ऐतवार ना कर

यूँ तो रश्क होता है हमें अपनी किस्मत पर

तमन्ना हद से गुजर जाए ऐसे बेक़रार मत कर




तर्के-मुहब्बत

वक़्त की दीवार पर दर्द की हर निशानी तेरी है

धड़कते दिल के जज्बातों की हर कहानी तेरी है

वफ़ा के कीमत की नीलामी हुई ज़माने में

बावजूदे तर्के-मुहब्बत तमन्ना दीवानी तेरी है





अपनापन

नयनो से नयनो की बात हो तो कैसे

खुशियों के सफ़र में चंद मुलाकात हो तो कैसे

कैसे जताए तुम्हे बेगानों में एक तू ही अपना है

तुम संग दो पल बिताने के हालात हो तो कैसे





तमन्नाये इश्क

तुम रुठोगे अगर तो सारे जतन कर मनाएंगे हम

तुम नजरे गर फेर लोगे जीतेजी मर जायेंगे हम

तमन्नाये इश्क की कोई हद नहीं होती

सम्हाल लो मुझे वरना बिखर जायेंगे हम


प्यार का नजराना

स्वीकार करो नजराना सनम मेरे प्यार का

नयनो के काजल,गजरे की खुशबू और हार का

तुम जो मिले हो तो मिल गयी खुदाई

तमन्ना क्या करेगी दुनिया संसार का




लगन

भींगी वारिश की बूंदों में अगन सी लगी

साजना तुझे पाने की लगन सी लगी

हँसता है ज़माना हमारी वफाई पर

तमन्ना तेरे प्यार में जोगन सी लगी