Monday 9 April 2012

अंतर्द्वंद

नमस्कार दोस्तों...आज सुबह से तमन्ना का मन उलझ गया है दिल और मन के बीच की तकरार को लेकर......... इन उलझे धागों का करूँ तो क्या करू .....कई सवाल सिनेमा की तरह मन की आँखों में आते जाते हैं., दिल पर भरोसा करू या मन पर....अपनों की बात सही है या दोस्तों की...मेरा ये निर्णय सही है या गलत ...आपकी सोच सही है या तमन्ना की तमन्ना की....मेरी ये सोच सही है या गलत..जबकि ये सही गलत को define करने वाला भी मे...रा मन ही है....जो हमें सही लगता है या जिस समाज में हम रहते है उन्होंने हमारे संस्कार में क्या conditioning की है हम उसी हिसाब से सही गलत का निर्णय करते है....वो गाना है ना उस ग़म को मार डालो.......अब तमन्ना ने सुलह कर ली है.... जब मन और आत्मा के बीच जब सुलझ नहीं होती दोस्तों तमन्ना मन को चलता कर दिल की बाते सुनती है.......तमन्ना तो यही करती है....दोस्तों ये अंतर्द्वंद का किस्सा आपके साथ भी होता होगा.....फिर आप क्या करते है...आप भी सोचते होंगे दुनिया में कई समाजसुधारक देश के लिए समाज के लिए मर मिट रहे हैं तमन्ना खुद से ही लडती रहती है...पर आप ये भी सोचये कि जिसने खुद के मन और दिल के बीच के अंतर्द्वंद का फासला तय कर लिया तो समाज सुधारक की क्या जरुरत......पहले हम ठीक हो लें तो दुनिया अपने आप निर्मल हो जाएगी.....सोचिये सोचिये......अरे दोस्तों फिर से मन पर दवाब क्यूँ दे रहे है.. ....दिल की सुनिए और तमन्ना के सुहाने सफ़र का हिस्सा बनिए....और देखिये जिया धड़कता कैसे है.......
 
 

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